आचार्य राम किशोर त्रिपाठी,अध्यक्ष, वेदान्त विभाग संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी वरिष्ठ उपाध्यक्ष, श्री काशी विद्वतपरिषद् ने मयखाना पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा :-
परम पूज्य ब्रह्मऋषि श्री कुमार स्वामी जी, कशी विद्वत परिषद् के विद्वानों और उपस्थित समस्त गण मयखाना ऐसा शब्द है उसमे म य ख और न इन सभी के अर्थ यदि लगाते हैं तो सीधे तत्व का बोध होता है
यदि एक एक अक्षर को लेकर हम अर्थ करते हैं-
म से ममता अभिमान का जब नाश होता है
य से यंत्रणा का नाश हो जाता है
ख स्वरुप जो ब्रह्म है
उसका अन यानी गमन होता है यानी प्राप्ति होती है।
मधुशाला जैसे ग्रन्थ को लिखकर हरिवंशराय बच्चन जी प्रसिद्द हो गये। उसी प्रकार यदि महाराज जी यह ग्रन्थ पूर्व (पहले) प्रकाश में लाए होते तो आज यह आचार्यों के कोष में चलता क्योकि यह सामान्य नहीं है। नाम सामान्य हो सकता है लेकिन अर्थ की गंभीरता सामान्य नहीं है।
यदि आप ऐसे केवल शब्द की तरह लें तो मधुशाला या मदिरालय कुछ भी कह दीजिये। यदि मधुशाला की तरह मयखाना कहें तो उस अर्थ का द्योतक मयखाना नहीं है।
क्योकि इसकी पंक्तियाँ सामान्य नहीं हैं –
मंथन करके भाव जगत का
आज निकाला पैमाना,
सभी कलाओं का ज्ञाता है
पूर्ण अनुभवी दीवाना
हुआ युगांतर पुनः सृष्टि का
झूम उठा हर दीवाना
युग-युग के जड़ अन्धकार में
हुआ प्रकाशित पैमाना
अंधकार से प्रकाश की तरफ ले जाते हुए आत्मतत्व (वह ब्रह्म तत्व जिससे सब प्रकाशित होता है) उस तत्व का बोध कराने वाला ग्रन्थ मयखाना है। जब तक ममता (अभिमान) नहीं टूटेगी तब तक यंत्रणा (जकड़न) है। ममत्व का जब परित्याग होगा तब यंत्रणा का परित्याग होगा। यंत्रणा का जब परित्याग होगा तब ख (ब्रह्म ) को अन यानी प्राप्त करेंगे।
केवल 4 शब्द में ही सम्पूर्ण वेदांत के तत्व, सम्पूर्ण दर्शन को रखा गया है। हम महाब्रह्मऋषि जी से प्रार्थना करते हैं कि आप 2 दिन का समय दें ताकि काशी में मयखाना के अर्थ पर सभा का आयोजन किया जा सके क्योकि इसका अर्थ अत्यंत विशाल है। अपने अपने दर्शन के विद्वान मयखाना में क्या तत्व हैं इसका अर्थ उस सभा में करेंगे।