हज़ारों वर्षों पुराने अनेक ग्रन्थ विद्यमान हैं जो विभिन्न विषयों का ज्ञान प्रदान करते हैं। धर्म का मूल ज्ञान वेदों में विदित है। वेदों का सार उपनिषद है और उपनिषदों का सार गीता है। वेदों में ब्रह्म (परमात्मा), देवता, ब्रह्मांड, ज्योतिष, गणित, रसायन, औषधि, प्रकृति, खगोल, भूगोल, धार्मिक नियम, इतिहास, संस्कार, रीति-रिवाज आदि सभी विषयों का ज्ञान विदित है। सभी ग्रंथों की उत्पत्ति वेदों से हुई एवं सभी वेद स्वयं मां दुर्गा जी से उत्पन्न हुए हैं। इसी प्रकार यदि भक्त और परमात्मा के अद्भुत मिलन का अनुभव करना हो तो उसके लिए एक पावन महाग्रंथ है - “पवित्र पावन मयख़ाना महाग्रन्थ”। परमात्मा की महाकृपा से इस महाग्रंथ का संकलन हुआ है। इस अद्भुत निराकार महाब्रह्मज्ञान को महाब्रह्मर्षि जी द्वारा परमात्मा के सुरूर में डूबकर 12 वर्ष की आयु में, मां दुर्गा जी की कृपा से साकार रूप में उतारा गया। यह महाग्रंथ आज के परिपेक्ष्य में धर्म, अध्यात्म, भक्ति और परमात्मा की सरलतम व्याख्या करने वाला एकमात्र महाशक्तिशाली ग्रन्थ है जिसकी महिमा के वर्णन में साकी ने कहा है
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